Russia Ukraine War: रूस ने यूक्रेन के शहर द्निप्रो पर मध्यम दूरी की 'गैर-परमाणु हाइपरसोनिक वारहेड वाली बैलिस्टिक मिसाइल' से हमला किया है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गुरुवार को देश के नाम संबोधन में यह ऐलान किया. यह हमला यूक्रेन के अमेरिका और ब्रिटेन से मिले लंबी दूरी के हथियारों के इस्तेमाल के जवाब में किया गया. पुतिन ने अपने बयान में कहा कि मिसाइल को Oreshnik कहते हैं और यूक्रेन के पास इसकी कोई काट नहीं है. रूस ने इस मिसाइल को दागने से पहले अमेरिका को इत्तिला की थी. क्रेमलिन और पेंटागन, दोनों ने इस बात की पुष्टि की है. पुतिन ने गुरुवार को एक बार फिर अमेरिका समेत पश्चिमी देशों को चेतावनी दी कि अगर उनके हथियार रूस के खिलाफ चले तो वह उन देशों पर पलटवार करेंगे. पुतिन बार-बार परमाणु युद्ध की धमकी भी देते रहे हैं. फिर रूस किसी बड़े हमले से पहले अमेरिका को खबर क्यों कर देता है? दुनिया की दो सबसे बड़ी परमाणु ताकतों के बीच यह कैसा शिष्टाचार है?
मिसाइल लॉन्च करने जा रहे... रूस ने पहले से बता दिया था
रूसी मिसाइल स्ट्राइक की जानकारी अमेरिका को 'नेशनल न्यूक्लियर रिस्क रिडक्शन सेंटर' के जरिए दी गई. क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा, 'लॉन्च से 30 मिनट पहले ऑटोमेटिक मोड में चेतावनी भेजी गई थी.' अमेरिकी रक्षा विभाग की प्रेस सचिव सबरीना सिंह ने भी यही बात दोहराई. रूस और अमेरिका, आमतौर पर एक दूसरे को बता देते हैं कि वे बैलिस्टिक मिसाइलों को लॉन्च करने की योजना बना रहे हैं या नहीं. हालांकि, यूक्रेन पर हमले के मामले में पहले यह साफ नहीं था कि ऐसा हुआ है या नहीं.
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क्यों बड़े हमले से पहले एक-दूसरे को बताते हैं रूस और अमेरिका?
दूसरे विश्व युद्ध के बाद, अमेरिका और रूस (तब सोवियत संघ) में परमाणु हथियारों की रेस शुरू हुई. दो महाशक्तियों के बीच तनाव का असर पूरी दुनिया पर पड़ा जिसे अब 'कोल्ड वॉर' के नाम से जाना जाता है. इसी कोल्ड वॉर के दौरान, 1962 में ऐसी स्थितियां बनीं कि दोनों देश सीधी जंग के मुहाने पर आ गए थे. उस प्रकरण को 'क्यूबा मिसाइल संकट' कहा जाता है. दोबारा वैसे हालात न बनें कि अमेरिका और रूस एक-दूसरे पर हमले को उतारू हो जाएं, इसलिए दोनों के बीच एक 'न्यूक्लियर हॉटलाइन' स्थापित की गई. कोल्ड वॉर के दौरान, अमेरिका और सोवियत संघ ने कई स्तरों पर ऐसी हॉटलाइनें बनाए रखीं.
जब रूस ने मार्च 2022 में यूक्रेन पर हमला किया, तब मास्को और वाशिंगटन के बीच एक और कम्युनिकेशन चैनल खोला गया. हालांकि, रॉयटर्स की एक रिपोर्ट कहती है कि इस लाइन का इस्तेमाल सिर्फ एक बार किया गया. अमेरिका के प्रतिबंध लगाने पर रूस ने उसके साथ किए गए कई हथियार नियंत्रण समझौतों को निलंबित कर दिया था. लेकिन रूसी अधिकारियों ने पिछले साल कहा कि वे वाशिंगटन को बैलिस्टिक मिसाइलों के बारे मे जानकारी देना जारी रखेंगे.
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अमेरिका और रूस आमतौर पर इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) दागने की योजना के बारे में एक-दूसरे को पहले से बता देते हैं. ऐसा उन गलतफहमियों से बचने के लिए किया जाता है जिनकी वजह से दो महाशक्तियों के बीच तनाव बढ़ सकता है.
किस तरह से होती है अमेरिका-रूस में बात?
ऊपर बताई दो कम्युनिकेशन लाइनों से इतर, अभी अमेरिका और रूस ने कई मैकेनिज्म बना रखे हैं. अमेरिका के डिफेंस सेक्रेटरी और रूस के रक्षा मंत्री के बीच कभी-कभार बात हुई है. अमेरिका और रूस के टॉप जनरल भी यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद दो बार बात कर चुके हैं. व्हाइट हाउस के नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर जेक सुलिवन और सीआईए के डायरेक्टर बिल बर्न्स ने भी रूसी अधिकारियों से संपर्क साधा है.
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क्यों हमले से पहले दी जाती है खबर?
कोल्ड वॉर के समय में दुनिया दो धड़ों में बंटी हुई थी. तब दोनों खेमों के देश कुछ बड़ा करने से पहले अपने-अपने ग्रुप लीडर (सोवियत संघ या अमेरिका) को जरूर बताते थे. कई मौकों पर सामने वाले देश को भी खबर की जाती है, जैसे भारत ने 2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक के समय किया था. इसी साल एक चुनावी रैली में, पीएम नरेंद्र मोदी ने बताया था कि बालाकोट के आतंकी कैपों पर एयर स्ट्राइक के बारे में पाकिस्तान को पहले ही सूचना दे दी गई थी.
हमले की खबर कुछ मिनटों पहले देना युद्धनीति का भी हिस्सा है. कई बार उकसावे वाली कार्रवाई का जवाब देने से तनाव के और बढ़ने का खतरा होता है. शायद ऐसा पलटवार सैन्य और कूटनीतिक रूप से प्रभावी भी न हो. लेकिन अगर कोई बड़ा घरेलू राजनीतिक धड़ा यह मांग उठाए कि उकसावे का जवाब दिया ही जाना चाहिए. ऐसे में, बड़े देशों को बताकर हमला करने से घर में नाक भी बच जाती है और दुनिया में वैसी प्रतिक्रिया भी नहीं होती, जैसे अचानक हमले पर आती.
इसे 2020 के एक उदाहरण से समझिए. ईरान के टॉप जनरल कासिम सुलेमानी को अमेरिका ने एक ड्रोन स्ट्राइक में मार गिराया था. वह हमला एक तीसरे मुल्क - इराक में किया गया था. ईरान के भीतर बड़े पैमाने पर आवाज उठी कि अमेरिका पर जवाबी हमला होना चाहिए. लेकिन ईरानी हुकुमत यह अच्छे से समझ रही थी कि अमेरिका पर सीधा हमला एक ऐसे युद्ध को शुरू कर सकता है जो वह जीत नहीं पाएंगे. यही वजह है कि ईरानी ने इराक में अमेरिका के सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया लेकिन उसमें किसी सैनिक की मौत नहीं हुई. क्यों? क्योंकि अमेरिकी सैन्य ठिकानों को पहले ही हमले की सूचना मिल जाती थी.
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यह साबित कर पाना लगभग नामुमकिन है कि ईरान ने जानबूझकर अमेरिका को यह जानकारी दी हो. लेकिन यह संभव लगता है कि हमले इस तरह से किए गए कि ज्यादा अमेरिका न मारे जाएं. 'सांप मर गया और लाठी भी नहीं टूटी' की तर्ज पर ईरान ने घर में पनपे गुस्से भी शांत कर दिया और तनाव की आशंका को भी खत्म कर दिया.
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